माउंट एवरेस्ट, जिसे सागरमाथा या चोमोलंगमा के नाम से भी जाना जाता है, केवल पृथ्वी का सबसे ऊंचा पर्वत शिखर ही नहीं है, बल्कि यह हमारी ग्रह की गतिशील प्रकृति का एक जीवंत उदाहरण भी है। यह जानकर शायद आपको आश्चर्य हो, लेकिन दुनिया का यह विशालकाय शिखर हर साल लगभग 4 मिलीमीटर की दर से और ऊंचा हो रहा है। यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि वैज्ञानिक तथ्य है जो पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटों की निरंतर हलचल का परिणाम है।
हमारी पृथ्वी की ऊपरी परत कई विशाल टुकड़ों से बनी है, जिन्हें टेक्टोनिक प्लेटें कहते हैं। ये प्लेटें निरंतर, हालांकि बहुत धीमी गति से, एक-दूसरे के सापेक्ष घूमती रहती हैं। माउंट एवरेस्ट और पूरी हिमालय पर्वतमाला का निर्माण एक ऐसे ही विशाल टकराव का परिणाम है: भारतीय प्लेट का यूरेशियाई प्लेट से टकराव।
लाखों साल पहले, भारतीय प्लेट उत्तर की ओर खिसक रही थी और धीरे-धीरे यूरेशियाई प्लेट से टकरा गई। चूंकि दोनों प्लेटें महाद्वीपीय क्रस्ट से बनी हैं (जो समुद्री क्रस्ट की तुलना में हल्की होती हैं), टकराव के दौरान एक प्लेट दूसरी के नीचे धंसने के बजाय, दोनों की ऊपरी परतें सिकुड़ने और मुड़ने लगीं। इस जबरदस्त दबाव और उत्थान प्रक्रिया ने धीरे-धीरे हिमालय पर्वतमाला को जन्म दिया, जिसमें माउंट एवरेस्ट भी शामिल है।
यह टकराव आज भी जारी है। भारतीय प्लेट अभी भी प्रति वर्ष कुछ सेंटीमीटर की गति से उत्तर की ओर बढ़ रही है और यूरेशियाई प्लेट से टकरा रही है। यह निरंतर दबाव ही हिमालय को और ऊंचा उठा रहा है। हालांकि प्लेटों की क्षैतिज गति प्रति वर्ष कई सेंटीमीटर है, इसके कारण होने वाला ऊर्ध्वाधर उत्थान, विशेष रूप से एवरेस्ट जैसे विशिष्ट बिंदुओं पर, लगभग 4 मिलीमीटर प्रति वर्ष मापा गया है।
यह सालाना वृद्धि बहुत कम लग सकती है, एक मिलीमीटर के चौथाई हिस्से से भी कम। लेकिन लाखों-करोड़ों सालों के पैमाने पर, यह निरंतर उत्थान ही है जिसने दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला का निर्माण किया है। हालिया मापों ने माउंट एवरेस्ट की आधिकारिक ऊंचाई 8848.86 मीटर स्थापित की है, और यह 4 मिमी सालाना वृद्धि इस ऊंचाई में धीरे-धीरे इजाफा कर रही है।
माउंट एवरेस्ट का यह निरंतर विकास हमें याद दिलाता है कि हमारी पृथ्वी एक स्थिर पिंड नहीं है। इसकी आंतरिक शक्तियां लगातार काम कर रही हैं, धीरे-धीरे लेकिन शक्तिशाली रूप से इसके परिदृश्य को आकार दे रही हैं। टेक्टोनिक प्लेटों की यह धीमी गति वाली ‘नृत्य’ प्रक्रिया ही पहाड़ों, महासागरों और महाद्वीपों के निर्माण के लिए जिम्मेदार है, और एवरेस्ट का हर साल थोड़ा और ऊंचा होना इसी अद्भुत भूवैज्ञानिक प्रक्रिया का एक प्रत्यक्ष प्रमाण है। यह प्रकृति की धीमी, अटूट शक्ति का एक प्रभावशाली प्रदर्शन है।